31 वर्षीय गौ पर्यावरण एवं अध्यात्म चेतना पदयात्रा (हल्दीघाटी से संपूर्ण भारतवर्ष)

ना हमें नाम चाहिए, ना हमें दान चाहिए,
हमें गो हत्यामुक्त गो सेवायुक्त हरा-भरा शान्तिपूर्ण स्वच्छ हिंदुस्तान चाहिए

जय गो माता
|| ॐ करणी ||
जय गुरुदाता

धेनु धाम फाउंडेशन

'धेनु धाम - जग हित काम '

पदयात्रा का अब तक का इतिहास

क्रमांक दिनांक ..... तक गांव की संख्या राज्य किलोमीटर
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31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा की यात्रा प्राचीन काल से ही भारत में गोधन को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौ-रक्षा, गौ-सेवा एवं गौ-पालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। यहाँ तक की स्वयं भगवान अपने निराकार रूप का त्याग कर निराकार, आकर, साकार रूप धारण कर भगवती गौ माता के हित धराधाम पर अवतरित होकर पधारते हैं।

बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार॥ गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
स्वयं भगवान कभी श्री राम रूप में तो कभी श्री कृष्ण रूप में तथा अनान्य अवतारों को धारण कर गौ सेवा की प्रेरणा हेतु इस धरा धाम पर अवतरित होते हैं। तथा स्वयं भगवती गौमाता की सेवा कर जन सामान्य को गौ-सेवा करने का निर्देश प्रदान करते हैं।

वास्तविक बात तो ये है कि सर्वजगत का हित करने वाली, सकल पापों का नाश करने वाली, सबका मंगल करने वाली, सबको आश्रय देने वाली गौमाता, जिनके तन में सभी देवता निवास करते हैं, जिनके चरणों में सारे तीर्थ निवास करते हैं, जिनके रोमकूप ऋषि आश्रय स्थल है, जो सारे जगत की माता कहलाती हैं, वह लोक कल्याण हित आश्रित अवतार के रूप में प्रकट होती है। शुद्र दृष्टि (सामान्य दृष्टि) से देखने पर गौमाता की भौतिक देह पशु से साम्यता रखती हैं, लेकिन वास्तव में अन्तर्दृष्टि से देखने पर पता चलता हैं कि गौमाता पशु नहीं, प्राणी नहीं, सनातन धर्म का प्राण है। गोमाता जानवर नहीं, भारतीय संस्कृति की जान है, सत्य सनातन धर्म की शुद्ध पहचान है, गौमाता भूत, भविष्य और वर्तमान है। गौमाता सनातन धर्म के अवतारों की इष्ट हैं और देवताओं समान है। यह बात विभिन्न धर्मग्रन्थों में भी उल्लेखित हैं, प्रमाणित हैं कि गोमाता स्वयं धरती पर चलता फिरता भगवान हैं। आज वर्तमान समय में भोगलोलुप आसुरी सभ्यता से मोहित मानव जाति द्वारा वेदलक्षणा गौवंश की उपेक्षा, तिरस्कार और हिंसा, निर्दोष प्राणियों (पशु-पक्षियों) का जीवनाधिकार हनन, पर्यावरण प्रदुषण जैसी सर्वसृष्टि शोषणकारी प्रवृतियों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रलयंकारी विष व्याप्त हो गया है, जिसका दुष्परिणाम मानव सहित समस्त जीव जगत के लिए घोर अन्धकारमय और अत्यंत क्लिष्ट नारकीय जीवन के रूप में सामने आ रहा है। उपरोक्त कारणों से समष्टि प्रकृति में भयंकर विकृतियाँ पैदा हो गई है, जिससे सृष्टि का श्रृंगार कहलाने वाला मनुष्य ही स्वयं के लिए अभिशाप बनता जा रहा है अर्थात् भौतिक तथा आध्यात्मिक जगत में भयंकर अँधेरा व्याप्त होता जा रहा है। मानव द्वारा निर्मित उपरोक्त विकट परिस्थितियों के कारण सृष्टि रचियता परमात्मा एवं सृष्टि की मूल प्रकृति अत्यंत अप्रसन्न है। वर्तमान समय में हजारों गौमाताएं कसाइयों के द्वारा काट दी जाती हैं, पोलीथीन खाकर प्राण त्याग देती हैं, सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं, धर्मपरायण जनता की उपेक्षाओं की शिकार हो रही हैं, आहार औषधि और आश्रय हेतु यत्र तत्र भटकने की लीला कर रही हैं। गौवंश के कष्ट में होने के कारण आज सारा मानव समाज इसी कारण दु:खी है। अतः प्रत्येक मनुष्य जिसे मानव शरीर प्राप्त हुआ हो, उसमें मानवता जाग्रत हो, तभी पूर्णता आएगी।

मनुष्य में मनुष्यत्व को जगाने में यदि कोई सार्वभौम साधन है, तो वह सर्वहितकारी भाव से वेदलक्षणा गौमाता की सेवा और पर्यावरण रक्षा……
पुज्या गौमाता तथा उसके अखिल गौवंश के संरक्षण, सम्पोषण, पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्षारोपण करना एवं विश्व शांति स्थापित करने वाली सनातन संस्कृति का प्रचार करना, यही एक पूर्णतया सर्व हितकारी प्रवृति है, जो निष्काम भाव से वेदलक्षणा गौवंश की सेवा को प्रचारित करेगी।
इन समस्त भावों का संचार जब परम पूज्य ग्वाल संत श्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के हृदय में हुआ, तब 31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा की संकल्पना हुई। गोवंश को पुनः जन मानस के हृदय पटल एवं जन-जन के आंगन में स्थापित करने के लिए संपूर्ण भारतवर्ष में जन जागृति अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए जन-जन तक पहुंचने की महती आवश्यकता है। इसी भाव को लेकर के पूज्य गुरुदेव भगवान के मन में 31 वर्ष तक पैदल चलकर प्रत्येक गांव में, शहर में जाकर गौ माता की अद्भुत महिमा लोगों तक पहुंचने का शुभ विचार प्रकट हुआ। और 4 दिसंबर 2012 को प्रातः 3:15 बजे इस यात्रा के विचार को मूर्त रूप प्रदान किया गया।

यह 31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा राजस्थान की वीर भूमि हल्दीघाटी से प्रारंभ हुई। हल्दीघाटी ऐसी ऐतिहासिक एंव वीर भूमि है, जिसे कलयुग का कुरुक्षेत्र भी कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति प्रतीत नहीं होती है। जहाँ पर हिंदूआ सूरज महाराणा प्रताप ने आततायी अकबर से अपनी मातृभूमि को रक्षित करने के उद्देश्य से भीषण युद्ध किया। महाराणा प्रताप सिंह जी ने उत्तम महलों का त्याग किया, गादी बिस्तरों का त्याग किया, सुख सुविधाओं का त्याग किया, और जंगल में रहना स्वीकार किया, काँटों पत्थरों पर चलना स्वीकार किया, घास की बनी रोटियां खाना स्वीकार किया, परन्तु मातृभूमि का सिर शर्म से नीचे झुकने नहीं दिया। मातृभूमि एंव गौमाता की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर किया। ऐसी वीर धरा से 4 दिसंबर 2012 को प्रातः 3:15 बजे दाताजी “”ब्रह्मलीन स्वामी श्री राम ज्ञान तीर्थ जी महाराज” के मार्गदर्शन में परम पूज्य ग्वाल संत श्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में “”31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा”” प्रारंभ हुई।

कई सारे छोटे-बड़े उद्देश्य, जैसे की….

  1. समाज से अंधविश्वास खत्म हो,
  2. हिंदुस्तान नशा मुक्त हो,
  3. कन्या भ्रूण हत्या समाप्त हो,
  4. दहेज प्रथा खत्म हो,
  5. स्वार्थ के वशीभूत होकर पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई और पर्यावरण प्रदूषण का कार्य जो निरंतर बढ़ता ही जा रहा है, उस पर नियंत्रण हो, 
  6. समाज पुनः गौमाता की दिव्य महिमा सुनकर के येनकेन प्रकारेण से गौ माता की सेवा में रक्षा में लगे
  7. अधिक से अधिक वृक्षारोपण हो

….को लेकर के यह महाअभियान विगत 12 वर्षों से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। इन 12 वर्षों में पदयात्रा के पदयात्री 1,30,000 किलोमीटर की दूरी नंगे पांव पैदल-पैदल चलकर तय कर चुके हैं तथा अपनी वाणी के माध्यम से लगभग 25000 से भी अधिक गांव में नगरों में शहरों में गौ माता जी की महिमा को पहुंच चुके हैं। इस पदयात्रा मैं चल रहे सत्संग से प्रभावित होकर अब तक ढाई लाख गौमाताओं को जन मानस के आंगन में स्थान प्राप्त हुआ है।
8 वर्ष तक लगातार राजस्थान प्रांत के विभिन्न गांवों शहरों नगरों, कस्बों, जिलों में नंगे पांव पैदल-पैदल 80,000 किलोमीटर की दूरी को तय करते हुए जन जाग्रति का कार्य परम पूज्य ग्वाल संत श्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के द्वारा संपन्न हुआ। राजस्थान प्रांत के कार्य के पूर्ण होने के पश्चात् संपूर्ण भारतवर्ष के अन्य गौ-सेवा प्रकल्पों को विस्तारित करने के उद्देश्य से एंव पूज्य संतों एवं महापुरुषों के आदेश पर परम पूज्य महाराज श्री ने यह कार्य अपने शिष्यों को सौंपते हुए तथा इस महाअभियान द्वारा हो रहे गौ माता की सेवा प्रचार कार्य को विस्तृत करते हुए इस 31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा को अन्य शाखाओं में विभाजित किया, जिनके नाम इस प्रकार है

  1. ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (शिव यात्रा)
  2. ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (श्याम यात्रा)
  3. ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (राम यात्रा)

वर्तमान समय में ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (शिव यात्रा) वाले विभाग का सेवा कार्य स्वामी आनन्द गोपाल सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में तथा ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (श्याम यात्रा) का सेवा कार्य गोपाल स्वामी धीरजानंद सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में तथा ३१ वर्षीय गो पर्यावरण और अध्यात्म चेतना पदयात्रा, (राम यात्रा) वाले विभाग का सेवा कार्य साध्वी शबला गोपाल सरस्वती दीदी जी के सानिध्य में चल रहा है। 31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा राजस्थान व गुजरात प्रांत के गौ सेवा प्रचार कार्य को पूर्ण कर वर्तमान में मध्य प्रदेश क्षेत्र में गौ सेवा के कार्य को सतत् प्रवाहित कर रही है।
इस यात्रा को सफल पुर्ण करने के लिए पूज्य गुरुदेव भगवान ने कई कठोर संकल्प ले रखे है:-

  1. पिछले 18 वर्षों से अन्न का त्याग कर रखा है, सिर्फ गौ माता का दूध और फलाहार प्रसाद ही पाते हैं।
  2. किसी भी प्रकार का मौसम/ऋतु होने पर भी पैरों में जुते, चप्पल, खड़ाऊ, धारण नहीं करते हैं, नंगे पैर ही रहते थे।
  3. शयन के लिए गादी-बिस्तर का प्रयोग नहीं करते हैं, चटाई या दरी बिछा कर ही विश्राम करते हैं।
  4. धन की अंधी दौड़ में जहाँ सारा संसार धन के लिए लोलुप है, पूज्य गुरुदेव भगवान धन को स्पर्श नहीं करते हैं।
  5. किसी के द्वारा प्रस्तावित आतिथ्य को स्वीकार करते हुए ग्रहस्थ जनों के आश्रयस्थल पर पदार्पण नहीं करते हैं।
  6. आधुनिकता के चलते जहाँ पर दुनिया इंटरनेट से जुड़ी है। ऐसी स्थिति में पूज्य गुरुदेव भगवान मोबाइल को स्पर्श नहीं करते हैं।
  7. किसी भी प्रकार के प्रचार संसाधन पर अपना नाम अथवा फोटो इत्यादि नहीं छपवाते हैं।
  8. पूज्य गुरुदेव भगवान किसी भी प्रकार का दान-दक्षिणा, भेंट, वस्तु, धन, रुपैया इत्यादि स्वीकार नहीं करते हैं।

परम पूज्य गुरुदेव भगवान के प्रतिनिधि के रूप में इस यात्रा में चल रहे समस्त संत भाई एवं साध्वी दीदी द्वारा इन समस्त नियमों में से अधिकांश नियमों का पालन किया जाता है। “”ब्रह्मलीन स्वामी श्री राम ज्ञान तीर्थ जी दाताजी एंव पूज्य महाराज श्री के आदेशानुसार इस यात्रा के दौरान कोई भी संत, पदयात्री या कर्मचारी किसी से भी किसी भी प्रकार का दान, दक्षिणा, नारियल, भेंट, अगरबत्ती, अन्न, वस्त्र कुछ भी स्वीकार नहीं करते है । 

व्यवस्था संचालन प्रभारी:- 31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा के शिव यात्रा, श्याम यात्रा, एवं राम यात्रा, तीनों विभागों के समस्त व्यवस्था संचालन का कार्य ब्रह्मचारी एकलव्य गोपाल जी ३६५ सदस्यों के माध्यम से करेंगे।